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क्या अखंड भारत बनने से भारत की कंपनियां सभी देशों की कंपनियों को निगल जाएंगी?

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will indian companies swallow others in akhand bharat

बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है। बाजार की दुनिया में यह एक सर्व स्वीकार्य तथ्य है। इसी मान्यता के आधार पर 1994 में पूरी दुनिया की कंपनियों को पूरी दुनिया में अपना माल बेचने की आजादी दी गई। इसी आजादी को उदारीकरण और उपभोक्ता अधिकार के रूप में प्रचारित किया गया। यह कार्य एक अंतरराष्ट्रीय संधि द्वारा संपादित किया गया ।जिसका नाम गैट संधि था। इसी संधि के कारण पूरी दुनिया के व्यापारियों का एक अंतरराष्ट्रीय संगठन तैयार हो गया और अब काम भी कर रहा है। जिसको विश्व व्यापार संगठन के नाम से जाना जाता है। जब विश्व व्यापार संगठन पर संधि हो रही थी। उस समय यह आवाज उठाई गई थी कि अमेरिका,चीन और यूरोप की बड़ी-बड़ी ताकतवर कंपनियां भारत की कंपनियों को निकल जाएंगी। किंतु ऐसा नहीं हुआ। भारत की कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा करने की कला आ गई। अपना अस्तित्व बचाने के लिए इस प्रतिस्पर्धा में भारत की कंपनियों को उतरना पड़ा। और भारत की कंपनियां इसमें कामयाब भी हो गई। इसलिए यूनियन बनने से कुछ नया नहीं होने वाला है। जो होना था विश्व व्यापार संगठन के लिए संपन्न हुई अंतरराष्ट्रीय संधि से हो चुका है। यह भारत में ही नहीं हुआ सभी देशों में हुआ है।

अखंड भारत बनने से भारत की कंपनियां पाकिस्तान, नेपाल, भूटान,बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे देशों की कंपनियों के सीधे संपर्क में आ जाएंगी। इससे छोटे-छोटे देशों की कंपनियों को भारत की बड़ी कंपनियों से सीखने का मौका मिलेगा। छोटे-छोटे देशों की कंपनियां भी अब बड़ी कंपनी बन पाएंगी। कई देशों में मजदूरी का रेट बहुत सस्ता है, इसे देखते हुए भारत की बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत से अपने उद्योग-धंधे बंद करके इन छोटे-छोटे देशों में अपने उद्योग-धंधे लगा देंगे। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा और स्थानीय विकास होगा। यानी भारत की बड़ी कंपनियां भारत के पड़ोसी देशों के लिए खतरा नहीं है,बल्कि एक सुनहरा अवसर हैं। भारत की कंपनी हो या किसी अन्य देश की कंपनी हो,उससे किसी दूसरे देश में धंधा-व्यापार करने के लिए जाने की इजाजत और पूरी आजादी तभी मिलेगी, जब वह यूनियन की सरकार में अपना पंजीकरण कराएं। यूनियन की सरकार में जितने भी कंपनियां पंजीकृत होगी वह किसी एक देश की कंपनी नहीं मानी जा सकती। यह सभी कंपनियां यूनियन के सभी देशों की साझी कंपनियां होगी। यानी भारत के पड़ोसी देशों को फ्री में बड़ी-बड़ी कंपनियों का स्वामित्व मिल जाएगा। और यह कंपनियां जो मुनाफा कमाएंगी और उस मुनाफे से जो टैक्स देंगी, वह टैक्स यूनियन के सभी देशों का साझा धन होगा। वह केवल भारत या किसी एक देश का धन नहीं माना जा सकता। टैक्स की यह राशि यूनियन की सरकार केवल भारत के विकास पर ही खर्च नहीं करेगी अपितु यूनियन में शामिल सभी देशों के विकास पर खर्च करेगी। इसलिए भारत के पड़ोसी देशों के लिए भारत एक कमाऊ भाई बन जाएगा। लेकिन ऐसा तभी हो पाएगा जब अखंड भारत का गठन हो।

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