इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमें दक्षिण एशियाई देशों की जनसंख्या में मौजूद विभिन्न धर्मों के मानने वालों की संख्या के बारे में जानना चाहिए। भारत, पाकिस्तान, नेपाल,भूटान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका, मालदीव और वर्मा को यानी कुल 10 देशों को दक्षिण एशिया में माना जाए तो ईसाइयों की जनसंख्या इस क्षेत्र में मात्र 2% से कुछ अधिक है। जनसंख्या के मामले में सबसे ज्यादा ईसाई भारत में रहते हैं। जिनकी जनसंख्या 3 करोड़ से अधिक यानी लगभग 2.5% है। प्रतिशत के अनुसार देखा जाए तो श्रीलंका और वर्मा में ईसाइयों का प्रतिशत सबसे अधिक लगभग 7% है। इन सभी देशों में जनसंख्या के अनुपात से देखा जाए तो मुख्य रूप से हिंदू, मुस्लिम और बौद्ध धर्म को मानने वाली जनसंख्या ही है।
विकिपीडिया के सन 2010 के आंकड़ों के अनुसार इन सभी 10 देशों में मुस्लिम आबादी कुल 48,28,65,400 है। जबकि हिंदू आबादी 1,01,84,89,890 है। सबसे ज्यादा मुसलमान पाकिस्तान में कुल 20,41,94,370 रहते हैं आबादी के अनुपात से दूसरे क्रम में भारत आता है जहां मुसलमानों की आबादी 18.9 करोड़ है। भारत की जनसंख्या में मुसलमानों का प्रतिशत 14.4 है और हिंदुओं का प्रतिशत 79.5 है। बौद्ध धर्मावलंबियों की जनसंख्या भारत में नहीं के बराबर यानी 97,96,880 हैं। भारत की जनसंख्या में बौद्ध धर्मावलंबियों का प्रतिशत 0.8 है। अगर दक्षिण एशियाई वतन में चीन को भी शामिल किया जाए तो आंकड़े बदल जाते हैं। किंतु ज्यादा परिवर्तन नहीं होता। इसका मूल कारण यह है कि चीन में कुल आबादी 1,34,13,40,000 है,किंतु इस आबादी में 52.2% आबादी किसी धर्म को नहीं मानती। कथित रूप से 52% आबादी सभ्य हो चुकी है। आम तौर पर चीन को एक बुद्धिस्ट कंट्री के रूप में जाना जाता है लेकिन बौद्ध धर्मावलंबियों की जनसंख्या यहां मात्र 18.2% है। चीन में एक बड़ा समाज लोकल धर्म मानता है जिनका प्रतिशत 21.9 है। यानी चीन में जनजातियों की जनसंख्या का प्रतिशत काफी बड़ा है जो अपने स्थानीय धार्मिक विश्वासों से अभी भी जुड़े हुए हैं। चीन में हिंदुओं की आबादी मात्र 20000 यानी नगण्य है। हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों की जनसंख्या अधिक यानी 1.8 प्रतिशत है। चीन में 2,41, 44,120 मुसलमान रहते हैं। यह आंकड़े विकिपीडिया के हैं जो सन 2010 में यथा विद्यमान जनसंख्या के आंकड़ों पर आधारित हैं। यह शोध सन 2010 में प्यू रिसर्च सेंटर ने किया था।
अगर संपूर्ण विश्व में विभिन्न धर्मावलंबियों की जनसंख्या पर एक नजर डाली जाए, तो सबसे ज्यादा लोग ईसाई धर्म को मानते हैं । विश्व की कुल जनसंख्या 6,89,58,62,000 में ईसाइयों का प्रतिशत 31.5 है जबकि मुसलमानों का प्रतिशत 23.11 है तथा हिंदू धर्मावलंबियों का प्रतिशत 14.98 है। विश्व में कुल 7% बौद्ध धर्म मानने वाले लोग रहते हैं। जनसंख्या वृद्धि दर के आंकड़ों पर यदि दृष्टिपात करें तो विश्व में इस्लाम को मानने वालों की जनसंख्या वृद्धि सबसे अधिक 1.84% है, और ईसाई धर्म मानने वालों की जनसंख्या वृद्धि दर सबसे कम 1.38% है। दूसरे क्रम पर सिख समुदाय की जनसंख्या 1.62% की दर से बढ़ रही है और जैन समाज की जनसंख्या 1.57% की दर से बढ़ रही है हिंदू धर्मावलंबियों की जनसंख्या विश्व में 1.52 प्रतिशतकी दर से बढ़ रही है। यद्यपि मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि विश्व में अन्य धर्मावलंबियों के अनुपात में सबसे अधिक है फिर भी आने वाले 1000 बर्षों में जनसंख्या वृद्धि दर के अनुसार विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या हिंदुओं की होगी और दूसरे क्रम में ईसाई होंगे। मुसलमानों की जनसंख्या तीसरे क्रम में होगी। इसमें अंतर केवल इतना आएगा कि जहां आज विश्व में सबसे ज्यादा ईसाई हैं वहां हजार साल बाद सबसे ज्यादा हिंदू होंगे। किंतु शिक्षा के और समृद्धि के बढ़ने के साथ-साथ जनसंख्या में धर्मावलंबियों के अनुपात का जो प्रतिशत है, वह कुछ और ही भविष्यवाणी करता है।
यानी जिस प्रकार शिक्षा और समृद्धि बढ़ने के कारण ईसाई समाज की जनसंख्या वृद्धि घटने लगी उसी प्रकार शिक्षा और समृद्धि बढ़ने के साथ-साथ हिंदुओं और मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर भी भविष्य में घटेगी और किसी भी धर्म को नहीं मानने वालों की जनसंख्या वृद्धि लगातार बढ़ेगी। इस निष्कर्ष के कारण यह संभावना ही सबसे प्रबल है कि भविष्य में सबसे ज्यादा जनसंख्या उन लोगों की होगी जो किसी धर्म में विश्वास नहीं करते होंगे, विज्ञान का ज्ञान ही उनके विश्वास का आधार होगा। विज्ञान के ज्ञान पर विश्वास करने वालों को अगर वैज्ञानिक धर्मावलंबी कहा जाए तो इस धर्म के सबसे अधिक अनुयाई वर्तमान में चीन,रूस और यूरोप में है। भविष्य में इनकी जनसंख्या बढ़ेगी और विश्व की जनसंख्या में इनका अनुपात भी बढ़ेगा। हिंदू और मुसलमानों का बड़ा प्रतिशत भविष्य में वैज्ञानिक धर्म मानने वाला बन जाएगा। इसलिए अलग-अलग धर्मो के अनुयायियों की जनसंख्या वृद्धि के वर्तमान आंकड़े भविष्य में नहीं चलेंगे। यहां उल्लेखनीय है की सबसे ज्यादा जनसंख्या वृद्धि दर उन्हीं समुदायों की होती है जिनकी आर्थिक स्थिति अपेक्षाकृत बदतर होती है।
भारत में मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर हिंदुओं की तुलना में अधिक रही है,किंतु यह दर हमेशा एक समान नहीं रही। सन् 1991 से लेकर सन् 2001 के बीच के दशक में हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर 19.9,% रही जबकि मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर 29.5% रही। किंतु बाद के दशक में सन 2001 से 2011 के बीच मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर घट कर 24.6% हो गई। भारत में मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर किसी साजिश के तहत है,यह निष्कर्ष भारत में अनुसूचित जातियों और जनजातियों की जनसंख्या वृद्धि दर से तुलना करने पर गलत साबित होता है। भारत में मुस्लिम जनसंख्या दर और अनुसूचित जातियों और जनजातियों की जनसंख्या वृद्धि दर लगभग लगभग समान है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है की जनसंख्या वृद्धि के लिए आर्थिक स्थिति जिम्मेदार होती है। क्योंकि भारत में मुसलमानों के आर्थिक स्थिति और अनुसूचित जाति जनजाति समाज की आर्थिक स्थिति लगभग समान है, इसलिए इन दोनों समुदायों की जनसंख्या वृद्धि दर भी लगभग समान है। भारत में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 1961 में 30.1 मिलीयन थी जो 2011 में बढ़कर 104.2 मिलियन हो गई यानी अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या वृद्धि दर 6.9 से बढ़कर 8.6 हो गई। अनुसूचित जातियों की संख्या 1961 में 64.4 मिलियन थी जो सन 2011 में बढ़कर 201.3 मिलियन हो गई। अनुसूचित जातियों और जनजातियों का जनसंख्या वृद्धि दर लगभग समान है। हिंदुस्तान के विभाजन से पहले हिंदू जनसंख्या 73% थी और मुस्लिम जनसंख्या 24% थी। भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश की जनसंख्या को जोड़कर देखें तो यह स्थिति आज 70 साल बाद भी लगभग जस की तस बनी हुई है।
सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत सरकार ने बताया था कि भारत में मुस्लिम जनसंख्या 17.22 करोड़ है। यानी कुल जनसंख्या में मुस्लिम अनुपात 14.22% है, जबकि हिंदू अनुपात 80% है। इस वृद्धि दर को ध्यान में रखते हुए अगर हम 50 साल आगे यानी सन 2061 में जनसंख्या के अनुपात की गणना करें तो मुस्लिम जनसंख्या 29.24 करोड़ हो जाएगी और हिंदू जनसंख्या 140.25 करोड़ हो जाएगी यानी मुस्लिम अनुपात, नीचे गिर कर 16.19% हो जाएगा और हिंदू अनुपात ऊपर उठकर 81.06% हो जाएगा। जनसंख्या के आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि अगर दक्षिण एशियाई यूनियन का गठन किया जाता है,तो मुसलमानों की जनसंख्या 50 करोड़ से कम रहेगी। जबकि हिंदुओं की जनसंख्या 100 करोड़ से अधिक रहेगी। इसमें चीन को शामिल कर लिया जाता है तो अधिक फर्क नहीं पड़ता। फर्क इतना पड़ता है कि बौद्ध जनसंख्या जो इस क्षेत्र में कुल 2 करोड़ 86 लाख 49 हजार 420 है, अब इसमें चीन में रहने वाले 24 करोड़ 41 लाख 23 हजार 880 लोग और जुड़ जाएंगे। यानी चीन के शामिल हो जाने से बौद्ध धर्म मानने वालों की जनसंख्या लगभग 27 करोड हो जाएगी। फिर भी मुसलमानों के लगभग 50 करोड़ और हिंदुओं के लगभग 103 करोड़ की तुलना में यह जनसंख्या काफी कम है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है की यह बात केवल अफवाह है कि दक्षिण एशियाई वतन बनने से या फिर एशियाई वतन बनने से इस क्षेत्र में मुसलमान बहुमत में हो जाएंगे। वास्तव में अभी भी इस क्षेत्र में हिंदू बहुमत में हैं और अखंड भारत बनने के बाद भी हिंदू बहुमत में बने रहेंगे। एशियन यूनियन बनने के बाद भी यह स्थिति बरकरार रहेगी।