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समाजवादी हिंदुत्व भविष्य में रक्षा करेगा दलित समाज का और उसको बचाएगा वर्ण व्यवस्था के जुल्म से

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भारत के दलितों द्वारा बौद्ध बनने के और एशियाई यूनियन बनाने के प्रयासों का भारत के ब्राह्मणवादी हिंदू लोग विरोध करेंगे या नहीं करेंगे, यह भविष्य के गर्भ में है। अगर उनकी नियति वास्तव में दलितों को गुलाम बनाने की है तो विरोध करेंगे। यदि उनकी नियति दलितों को आजाद करने की है तो दलितों के दृष्टिकोण का विरोध नहीं करेंगे। ब्राह्मणवादी हिंदू यदि भविष्य में अखंड भारत का विरोध करते हैं तो इसे दलित समाज अपने विरुद्ध एक सुबूत के रूप में देखेगा। ऐसा सुबूत जिससे उनको विश्वास हो जाएगा कि ब्राह्मणवदी हिंदू भविष्य में वर्ण व्यवस्था थोपकर दलित समाज को फिर सामाजिक गुलामी के दलदल में धकेलेंगे।
भारत का दलित और अनुसूचित समाज हिंदुओं की सभ्यता और संस्कृति में पूरी तरह घुल मिल गया है। अब उसको फिर से नया धर्म अपनाना बहुत आसान रास्ता नहीं है। क्योंकि संस्कारों की उपस्थिति इंसान की कोशिकाओं और उसके जींस और डीएनए तक में चली जाती है। ऐसी स्थिति में दलित समाज सहज रूप में बौद्ध धर्म अपना ले, ऐसा आसान नहीं है। वह जिन ब्रह्मणवादी देवी देवताओं की पूजा करता रहा, उनको अचानक छोड़ दे- यह दलित समाज के नेताओं के लिए तो आसान है क्योंकि वह शिक्षित, समर्थ और धनवान हो गए हैं ‌ लेकिन आम दलित समाज के लिए आसान नहीं है। अगर वह अपनी आर्थिक दरिद्रता में कदम कदम पर आने वाली तकलीफों को दूर करने के लिए देवी देवताओं से प्रार्थना नहीं करेगा तो क्या एबी मानसिकता के उन दलित नेताओं से करेगा, जो धनबल में कमजोर होने के नाते उनसे रोटी बेटी का रिश्ता तक नहीं जोड़ते? इसलिए दलित समाज स्वयं भी कोई ऐसा रास्ता चाहता है जिससे वह कथित रूप से हिंदू पुनर्जागरण के खतरे से अपने आप को सुरक्षित रह सके और उसे धर्म परिवर्तन न करना पड़े, जिससे बुरे दिनों में काम आने वाले उसके देवी देवताओं का सहारा न छूट जाए। ऐसा तभी संभव हो सकता है जब भारत का दलित और अनुसूचित समाज भारत के समाजवादी हिंदुत्व की ताकतों के साथ एकसार हो जाए, घुल मिल जाए। ऐसा होता है तो जनसंख्या के अनुपात से उसकी ताकत काफी बड़ी हो जाएगी। क्योंकि भारत के पिछड़े समाज का अधिकांश हिस्सा वर्ण व्यवस्था को दोबारा से लाने के विरोध में है। इसलिए यह समाज हिंदू भले कहा जाता है किंतु वास्तव में यह समाज ब्राह्मणवादी हिंदुत्वव की बजााएं समाजवादी हिंदुत्व मैं विश्वास करने वाले समाज हैं।
दक्षिण एशियाई देशों को एक करने के अभियान में समाजवादी हिंदू ताकते ब्राह्मणवादी हिंदू ताकतों के विरुद्ध एकजुट हो सकते हैं। क्योंकि समाजवादी दृष्टिकोण होने के नाते समाजवादी हिंदू सामाजिक और आर्थिक न्याय में विश्वास करते हैं। उनको लगता है कि दक्षिण एशियाई देशों का साझा वतन बनेगा तो भारत ही नहीं, इस क्षेत्र के सभी देशों के बहुसंख्यक लोगों की आर्थिक समृद्धि में बढ़ोतरी होगी। जो धन आज आपसी लड़ाई, झगड़े, युद्ध और हथियारों की खरीद पर बर्बाद हो रहा है, वह धन वोटरशिप कानून के माध्यम से लोगों के बैंक खाते तक पहुंचेगा। इस उम्मीद में भारत का दलित समाज और भारत का समाजवादी हिंदू समाज एकजुट हो सकता है और ब्रह्मणवादी हिंदुओं का सामना कर सकता है, जो हिंसा, क्रूरता वह अन्याय मैं विश्वास करता है।
ऐसा होता है तो भारत के दलित समाज को धर्म परिवर्तन करके बौद्ध बनने की जरूरत समाप्त हो जाएगी और उनको मुसलमानों के साथ गठजोड़ करने की जरूरत भी समाप्त हो जाएगी। नेपाल में समाजवादी हिंदुओं की जनसंख्या काफी बड़ी है। अखंड भारत बनते ही नेपाल के समाजवादी हिंदू भारत के समाजवादी हिंदुओं के साथ घुल मिल जाएंगे और एकजुट हो जाएंगे। इससे भारत और नेपाल दोनों के समाजवादी हिंदुओं को ब्रह्मणवादी हिंदू ताकतों से सुरक्षित रहने का आश्वासन मिल जाएगा।
अनुसूचित समाज को 80% आरक्षण
अंत्योदय सिद्धांत के अनुसार दक्षिण एशियाई शासन प्रशासन में अनुसूचित जाति जनजाति समाज को 80% प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव है। यह प्रस्ताव उसी नीति के तहत है जिस नीति के तहत देश स्तरीय शासन प्रशासन में अन्य पिछड़े वर्ग के समुदाय को 80% और प्रदेश स्तरीय शासन प्रशासन में अति पिछड़े वर्गों को 80% आरक्षण देने का प्रस्ताव है।
क्योंकि दक्षिण एशिया का शासन प्रशासन प्रत्येक देश के न्याय पंचायत स्तर उतर कर काम करेगा, इसलिए सभी न्याय पंचायतों के स्तर पर दक्षिण एशियाई प्रशासन के कार्यालय होंगे और सभी ब्लॉकों के स्तर पर दक्षिण एशियाई पुलिस थाने होंगे। न्याय पंचायत स्तर के कार्यालयों और ब्लॉक स्तर के थानों में बड़े पैमाने पर सरकारी कर्मचारियों की भर्ती होगी जिससे युवकों को रोजगार मिलेगा। विशेषकर इन सरकारी कार्यालयों में अनुसूचित जाति जनजाति समाज के लोगों को 80% नौकरियां आरक्षित होंगी। इसके कारण दलित समाज का तेजी से उत्थान होगा और वह वतन की मूल धारा में शीघ्र ही शामिल हो जाएंगे। अपने लिए रोजगार का इतना बड़ा हो अवसर देखकर दक्षिण एशियाई क्षेत्र के सभी देशों का अनुसूचित जाति और जनजाति समाज अखंड भारत की दिशा में तन मन धन से युद्ध स्तर पर काम करेंगा।

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