देशों की सरकारें अपने अपने देश के युवकों और युवतियों को रोजगार देने में इसलिए भी नाकाम हो जाती हैं क्योंकि उनके सामने अपने अपने देश के कंपनी चलाने वाले लोगों का लगातार इस बात के लिए दबाव बना रहता है कि उनकी कंपनी में सस्ते मजदूर मिलते रहें। इसके लिए सरकार देश में अधिक से अधिक नागरिकों को आर्थिक तंगी में रखे। वह जितने आर्थिक रूप से तंग होंगे, वह उतने कम पैसे में कंपनियों में काम करने के लिए तैयार होंगे। जितने कम पैसे में श्रमिक काम करेंगे, कंपनी से पैदा होने वाला सामान उतना ही सस्ता होगा और उतनी ही ज्यादा बिकेगा। सामान जितना ज्यादा बिकेगा, कंपनी संचालकों को उतनी ही ज्यादा आय होगी। लेकिन यह आय टैक्स के रूप में सरकार के पास न जाने पाए धनवान लोग इस बात का हर वक्त ध्यान रखते हैं। अपने देश का धनवान वर्ग इस बात का ध्यान रखता है कि जो पैसा टैक्स के रूप में सरकार के पास जाए, वह पैसा देश के नागरिकों तक न पहुंचने पाए, जिससे उनकी आर्थिक तंगी लगातार बनी रहे और श्रमिक अपने श्रम का सौदा करने का अवसर कभी भी न पा सकें। इसे तकनीकी भाषा में निर्यात की मजबूरी कहते हैं। देश के एबी मानसिकता के धनवान वर्ग और सरकार चलाने वाले उच्च स्तरीय नेतागण सामूहिक रूप से लगातार यह प्रयास करते रहते हैं कि निर्यात बढ़ाने के लिए और दूसरे देशों में सामान बेचकर अपने देश की कंपनियों का मुनाफा बढ़ाने के लिए देश में हर वक्त गरीबों और बेरोजगारों की बड़ी फौज मौजूद रहनी चाहिए।
इस प्रकार लोगों के परिवारों में मौजूद आर्थिक तंगी, देश में चौतरफा मौजूद गरीबी और बेरोजगारों की फौज अपने देश की सरकार जानबूझकर पैदा करती है। यह गरीबी, यह आर्थिक तंगी और यह बेरोजगारी- तीनों सरकार द्वारा पैदा की गई कृत्रिम समस्याएं हैं। जब तक सरकारों के सामने पड़ोसी देशों से युद्ध करने की और दूसरे देशों में अपने देश की कंपनियों का सस्ता माल बेचने की मजबूरी बनी रहेगी, तब तक सरकारें और हर देश के उच्च स्तरीय नेतागण मिलकर कृत्रिम गरीबी, कृत्रिम आर्थिक तंगी और कृत्रिम बेरोजगारी बनाकर रखेंगे।
इसका एक ही समाधान है कि देशों की साझी संसद और सरकार बन जाए। देशों की साझी करेंसी नोट और बाजार बन जाए। देशों की साझी अदालत और व्यापार बन जाए। देशों की साझी सेना बन जाए। अखंड भारत बनाने से उक्त सारी जरूरतें पूरी हो जाएंगी। पड़ोसी देशों की साझी सेना बन जाएगी तो पड़ोसी देशों से युद्ध करने की जरूरत ही समाप्त हो जाएगी। पड़ोसी देशों की साझी बाजार और साझी करेंसी नोट बन जाएगी, तो दूसरे देश में सस्ता माल बेचने के लिए अपने देश के लोगों को आर्थिक गुलाम बनाए रखने और अपने देश में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बनाए रखने की जरूरत समाप्त हो जाएगी। कई देशों की साझी बाजार और साझी सरकार बनने के कारण अब कंपनियों के सामने ऑटोमेटिक मशीनों से ही काम कराने की मजबूरी भी काफी हद तक खत्म हो जाएगी और कंपनियों में अधिक लोगों को रोजगार मिल सकेगा।
भारत सहित दक्षिण एशिया के सभी पड़ोसी देशों के आर्थिक रूप से तंग गरीबों और बेरोजगारों को जब यह रहस्य पता चलेगा अखंड भारत बनाने से उनके घर की आर्थिक तंगी समाप्त हो जाएगी और उनको मनचाहा रोजगार मिल जाएगा, तो एशियाई देशों के सभी गरीब, आर्थिक रूप से तंग परिवार और बेरोजगार अखंड भारत बनाने के आंदोलन में कूदेंगे।