Skip to content

हिंदुस्तान के विभाजन संचालित रही भारत-पाकिस्तान की समकालीन राजनीति

  • by
विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की राजनीति विभाजन केंद्रित रही। क्योंकि यह विभाजन जनता की इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती किया गया था. इसलिए दोनों देशों की सरकारें एक दूसरे के विरुद्ध उसी तरह आग उगलते रहे जैसे सगे भाई घर में बटवारा होने के बाद एक दूसरे के शत्रु हो जाते हैं. लेकिन इससे यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि विभाजन के बाद सगे भाई सगे नहीं रह जाते. वस्तुतः यह शत्रुता नहीं क्षोभ था। भारत की सरकार पाकिस्तान की सरकार से क्षुब्ध थी और पाकिस्तान की सरकार भारत की सरकार से एक क्षुब्ध थी. यह क्षुब्धता पाकिस्तान से भारत की एक बार युद्ध में भी बदल गई।
विभाजन के बाद पाकिस्तान में मुसलमान बहुमत में हो गए और भारत में हिंदू बहुमत में हो गए। पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए और भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक हो गए। पाकिस्तान की सरकार ने बहुसंख्यक जनसंख्या को देखते हुए धर्म आधारित संविधान अपनाया। परिणाम स्वरूप पाकिस्तान एक इस्लामिक देश बन गया- जहां अल्पसंख्यकों के अधिकार न के बराबर रहे। भारत पाकिस्तान की तुलना में कई गुना अधिक भौगोलिक क्षेत्र वाला देश बना और कई गुना अधिक जनसंख्या वाला क्षेत्र बना. एक धर्म-संप्रदाय वाला नहीं, तमाम धर्म और तमाम संप्रदायों वाला देश बना. इसलिए भारत पाकिस्तान जैसा किसी एक धर्म के रास्ते पर चलने वाला देश नहीं बन सकता था. इसीलिए सभी धर्मों के प्रति समान बर्ताव करना भारत सरकार के लिए मजबूरी बनी. इसी मजबूरी ने भारत के संविधान की आत्मा का निर्माण किया। यह मजबूरी पाकिस्तान सरकार के सामने नहीं थी. इसलिए पाकिस्तान की सरकार इस्लामिक धर्म पर चलने वाली एक सरकार बनी।
किंतु दोनों सरकारों के सामने जो परिस्थितियां थी, इन परिस्थितियों की बारीकी को समझ पाना सबके लिए संभव नहीं था। परिणाम स्वरूप भारत में ज्यादातर हिंदू समाज को यह बात समझ में आने लगी कि आखिर जब पाकिस्तान एक इस्लामिक देश बना, तो भारत हिंदू देश क्यों नहीं बना? यह तर्क धर्मनिरपेक्षता के सभी तर्कों पर भारी पड़ा और जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया वैसे वैसे उक्त प्रश्न में विश्वास करने वालों की संख्या बढ़ती गई. यहां तक कि ऐसा विश्वास करने वाले भारत में बहुमत में हो गए और ऐसा विश्वास करने वालों ने भारत सरकार की सत्ता को सन 2014 में कब्जा कर लिया। हलांकि इसकी शुरुआत काफी पहले से हो गई थी।
भारत और पाकिस्तान के निवासियों की सभ्यता और संस्कृति लगभग लगभग एक थी. उनका खानपान, उनका पहनावा, उनका रहन-सहन, उनकी बोली भाषा- सब कुछ एक था. इसलिए इस बात की बड़ी संभावना थी कि कहीं यह एकता भारत पाकिस्तान को फिर से एक देश बनने के लिए विवश न कर दे. ऐसी भविष्यवाणी कई महापुरुषों ने कर रखी थी. उसमें श्री अरविंदो, महात्मा गांधी, खान अब्दुल गफ्फार खान, संत विनोबा भावे जैसे कई महापुरुष थे, जिनकी यह मान्यता थी कि यह विभाजन कृतिम है और कोई भी कृतिम चीज अधिक देर तक टिकाऊ नहीं होती. इसलिए एक न एक दिन अवश्य आएगा जब भारत पाकिस्तान फिर से एक हो जाएंगे. भारत-पाकिस्तान की एकता के लिए डॉ राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, कर्पूरी ठाकुर जैसे राजनेता लगातार प्रयास करते रहे. किंतु यह प्रयास कामयाब न हो सके, इसीलिए भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने अपने अपने देश में यूरोपियन राष्ट्रवाद को लगातार हवा दिया और इसी यूरोपियन राष्ट्रवाद की आग ने दोनों देशों के बीच एक बार युद्ध भी करवाया।
हालांकि हिंदुस्तानी राष्ट्रवाद की परिभाषा यूरोपियन राष्ट्रवाद से बिल्कुल अलग थी. जहां पर संपूर्ण वसुधा को कुटुम्ब माना जाता था और संपूर्ण विश्व के कल्याण की कामना थी. यह अजीबोगरीब विडंबना थी कि जहां धार्मिक प्रार्थना में संपूर्ण विश्व के कल्याण की कामना होती थी, वही राजनीतिक प्रार्थना में यह कामना गायब रहती थी और पड़ोसी देशों के विरुद्ध नफरत और हिंसा तथा युद्ध की कामना की जाती रही।
पाकिस्तानी सरकार धर्मनिरपेक्षता के रास्ते पर नहीं चल सकी और इस रास्ते पर चलना उचित भी नहीं समझा. क्योंकि वहां लगभग 97% जनसंख्या इस्लाम को मानने वाली थी. लेकिन भारत में ऐसा नहीं था. यहां सनातन धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म, ईसाई धर्म और मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले वैदिक धर्म को मानने वाले आर्य समाज के लोगों की संख्या भी काफी बड़ी थी। इसलिए भारत सरकार के सामने मजबूरी थी कि अगर वह धर्मनिरपेक्षता के रास्ते पर नहीं चले, तो गृह युद्ध होने का खतरा था. इस गृह युद्ध से बचने के लिए भारत की सरकार ने धर्मनिरपेक्षता के रास्ते पर चलना ही ठीक समझा. 1975 के संविधान संशोधन में धर्मनिरपेक्षता के शब्दों को विधिवत भारत के संविधान की प्रस्तावना में जोड़ दिया गया। जो आज तक बरकरार है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Mission for Global Change