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उग्रवाद व अलगाववाद का खात्मा हो जाएगा अखण्ड भारत से

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अखंड भारत बनते ही भारत के अलग-अलग हिस्सों में चल रहा अलगाववादी उग्रवाद समाप्त हो जाएगा। इसका कारण यह है की सभी उग्रवादी संगठन यह समझ जाएंगे कि इंटरनेट के इस युग में अब मिलजुल कर रहने का वक्त आ गया है। मिलजुल कर रहने से ही समृद्धि आएगी। अलग होने की मांग करने से अलग-थलग पड़ जाने का खतरा है। अलग-थलग रहकर एक टापू जैसा जीवन हो जाएगा, जहां का निवासी शेष दुनिया की सभ्यता और संस्कृति से बहुत दूर हो जाएगा। उसे आदिम जीवन में जीने के लिए विवश होना पड़ेगा। वह दुनिया की भाषा और दुनिया की तकनीक से पूरी तरह कट जाएगा। उसके क्षेत्र के निवासियों के रहन-सहन का स्तर बहुत नीचे गिर जाएगा। क्षेत्र के निवासियों का व्यक्तित्व विकास संभव नहीं हो पाएगा।
उस समाज के लोगों की स्थिति उस मानुष जैसा हो जाएगा जिसको बचपन में जंगल में ले जाकर जानवरों के बीच छोड़ दिया गया हो और वह जानवरों के बीच ही पला बढ़ा हो। जाहिर सी बात है कि कोई भी समाज जिसका वश चलेगा वह ऐसी स्थिति में खुद को ले जाना पसंद नहीं करेगा। क्षेत्रीय स्वायत्तता और क्षेत्रीय आजादी के नाम पर अब किसी भी समाज का कोई सदस्य ऐसी परिस्थिति में जीवित रहना बर्दाश्त नहीं करेगा। इंटरनेट की भूमिका इस मामले में क्रांतिकारी है। अब किसी भी क्षेत्र का व्यक्ति केवल अपने क्षेत्र के कथित अभिभावक की बात पर विश्वास नहीं कर सकता। अपितु वह अपनी आंखों से बाकी दुनिया को देख सकता है और स्वयं यह निर्णय ले सकता है कि उसका जीवन सबके साथ मिलजुल कर रहने से बेहतर होगा या अपने आप को अलग-थलग बनाकर रहने से बेहतर होगा? समंदर के टापूओं का जीवन होता है। अपनी कथित रूप से अनोखी सभ्यता व संस्कृति के नाम पर और स्वायत्तता व क्षेत्रीय आजादी के नाम पर अपने क्षेत्र के एबी मानसिकता के लोगों की गुंडागिरी और आर्थिक शोषण को अब धरती के किसी भी कोने का व्यक्ति बर्दाश्त नहीं करेगा।
इसलिए इंटरनेट ने क्षेत्रीय राष्ट्रवाद का अंतिम संस्कार कर दिया है। यह सच्चाई दुनिया के बहुत लोगों को समझ आ चुकी है और देर सवेर धरती के हर व्यक्ति को समझ में आएगी। कुछ मामले में आत्मनिर्भर बनना और कुछ अन्य मामलों में दूसरों का सहयोग लेना- यह आने वाले भविष्य की सच्चाई है। दुनिया का कोई भी समुदाय यह नहीं कह सकता कि वह समुद्री टापू बन कर हर मामले में आत्मनिर्भर बन सकता है और अपने समुदाय के लिए उपयोगी हर चीज का उत्पादन कर सकता है। वह कुछ चीजों के उत्पादन में महारत हासिल कर सकता है और अपने इन्हीं उत्पादनों के बदले दूसरी जगहों से अपने समाज के लिए उपयोगी अन्य वस्तुएं प्राप्त कर सकता है। इस तरीके से अपने समाज को अधिक से अधिक सुविधाएं दी जा सकती हैं।
अगर परस्पर निर्भरता की बात अपने समाज के उन्नति के लिए जरूरी है तो इससे फर्क नहीं पड़ता कि अपना समाज एक देश के रूप में संगठित हो या एक प्रदेश के रूप में संगठित हो। अपना समाज संघनित रूप में एक ही देश में हो या एक ही प्रदेश में हो, इससे बेहतर है कि अपने समाज के सदस्य गण अनेक प्रदेशों और अनेक देशों में हों। सिख समाज विश्व में एक छोटा सा समुदाय है किंतु इसकी उपस्थिति संपूर्ण विश्व में है। और यह समुदाय विश्व के सबसे ज्यादा विकसित और उन्नत समुदायों में से एक है। सिख समाज जैसे दुनिया में ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जो यह साबित किए हैं कि किसी समाज के उन्नति के लिए बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है कि उस समाज का अपना कोई देश हो या उस समाज का अपना कोई प्रदेश हो। आज पूरी दुनिया के लोग सोशल मीडिया से जुड़ चुके हैं, इंटरनेट के सहारे एक दूसरे से संवाद स्थापित कर चुके हैं, पूरी दुनिया की एक साझी बाजार व्यवस्था कायम हो चुकी है और पूरा संसार एक शासन तंत्र की तरफ बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में अपने समुदाय के लिए अलग प्रदेश की मांग करना और अलग देश की मांग करना वैसा ही है जैसे अपने समुदाय को दूर ले जाकर किसी समुद्री टापू में बसाना। इतिहास में सुरक्षा की दृष्टि से ऐसा करना हो सकता है कि आवश्यक रहा हो। किंतु वर्तमान में ऐसा करना आत्मघाती कदम है। दुनिया का कोई भी समुदाय जो अपनी आत्महत्या नहीं करना चाहता, वह अतीत मैं लोकप्रिय क्षेत्रीय स्वायत्तता और क्षेत्रीय राष्ट्रीयता के नाम पर खुद को किसी टापू में कैद नहीं कर सकता।

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