भारत के मुसलमानों द्वारा अखंड भारत के प्रयासों का समर्थन करने का दूसरा कारण यह है कि भारत के मुसलमान धर्मनिरपेक्ष राज्य में रहने के अभ्यस्त हो गए हैं। 70 साल से वह एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में रह रहे हैं। उन्होंने देखा कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में भी उनकी धार्मिक आजादी में कोई अंकुश नहीं होता। यह अलग बात है कि उनको धार्मिक अराजकता का अवसर नहीं होता। भारत के मुसलमान धार्मिक अराजकता और धार्मिक आजादी में अंतर बेहतर समझने लगे हैं। किंतु यह अंतर उन देशों के मुसलमान नहीं समझ पाए हैं जो इस्लामिक राज्य में रहते रहे हैं। भारत के मुसलमानों में धर्मनिरपेक्षता उनके संस्कार में बस गई है और उनकी रगों में घुल गई है। वह जानते हैं कि दूसरे धर्म के अनुयायियों के साथ कैसे रहना चाहिए और दूसरे धर्म के अनुयायियों की सभ्यता, संस्कार और आस्थाओं की कद्र क्यों करनी चाहिए? वह जानते हैं कि दूसरे धर्म के अनुयायियों के अंधविश्वासों का प्रचार-प्रसार क्यों नहीं करना चाहिए और उनको उनके धर्म के अंधविश्वासों की तरफ ध्यान खींच कर चिढ़ाने का काम क्यों नहीं करना चाहिए? भारत के मुसलमान जान गए हैं कि इस्लाम सहित सभी धर्मों में समाज के लिए उपयोगी कुछ बातें हैं और कुछ बातें विज्ञान के इस युग में अंधविश्वास साबित हो चुकी हैं। उन्हें मालूम है कि अगर हम दूसरे धर्म के अनुयायियों पर एक अंगुली उठाते हैं तो बाकी चारों अंगुलियां चारों उनके अपने धार्मिक अंधविश्वासों के ऊपर स्वत: तक उठ जाती है। इस समझदारी के कारण ही भारत में 70 सालों से मुसलमान अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ प्रेम भाव से रहते रहे। इक्का-दुक्का सांप्रदायिक झड़पों को जरूरत से ज्यादा प्रचार करके यह कहा जा सकता है कि भारत के मुसलमान हिंदुओं के साथ नहीं रह सकते। किंतु यह सच्चाई को नकारने का काम है।
दक्षिण एशिया यूनियन के माध्यम से जब अखंड भारत बनेगा, तो यह समझ सभी मुसलमानों को होगी ही कि दक्षिण एशियाई सरकार, उसकी संसद, उसकी अदालत, उसका शासन और प्रशासन निश्चित रूप से सभी धर्मों का सम्मान करेगा। तभी दक्षिण एशियाई वतन का यूनियन (अखंड भारत) संभव है। किसी एक धर्म के सिद्धांतों पर दक्षिण एशियाई शासन प्रशासन का गठन करना असंभव है। चूंकि भारत के मुसलमान धर्मनिरपेक्ष शासन में रहने की आदती हो चुके हैं। इसलिए दक्षिण एशियाई शासन प्रशासन में रहने में न तो उनको कोई आपत्ति होगी और न ही कोई नया अनुभव आएगा, जिस अनुभव को उन्होंने पहले से हासिल नहीं कर रखा है।
भारत के मुसलमान एक धर्मनिरपेक्ष शासन में रहने के आदती हो चुके हैं, इसलिए उनके ऊपर एक “हिंसक समाज” होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता। भारत के शासन प्रशासन में महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांत का भारी असर रहा। इसलिए शांतिपूर्ण सत्याग्रह पूरे देश में अपनी आवाज को उठाने का सबसे बड़ा हथियार अंग्रेजों के जाने के पहले भी था और अंग्रेजों के जाने के बाद भी बना रहा। अहिंसा के हथियार का इस्तेमाल भारत के मुसलमानों ने भी गत 70 सालों में बखूबी किया। सन 2019 में बने नागरिकता संशोधन कानून के अपमान के खिलाफ भारत के मुसलमानों ने जमकर आवाज उठाई। किंतु उन्होंने अहिंसक सत्याग्रह का हथियार ही इस्तेमाल किया। दिल्ली को छोड़कर बाकी पूरे देश में इस कानून के खिलाफ जितने आंदोलन हुए, उस में कहीं भी हिंसा की कोई घटना नहीं घटी। इससे साबित होता है कि भारत के मुसलमानों को उन मुसलमानों की श्रेणी में रखना उनके साथ अन्याय होगा, जो मुसलमान इस्लामिक राज्य में रहने के आदती हो चुके हैं।
दक्षिण एशियाई शासन प्रशासन जब अस्तित्व में आएगा तो भारत के मुसलमान पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और अन्य देशों के मुसलमानों के लिए एक प्रशिक्षक और मार्गदर्शक की भूमिका निभाएंगे। भारत के मुसलमानों के ऐसे प्रयासों और ऐसे परिश्रम के कारण अन्य पड़ोसी देशों के मुसलमान भी धर्मनिरपेक्ष राज्य में रहने के संस्कार हासिल कर सकेंगे और राज्य के प्रतिरोध के लिए अहिंसक सत्याग्रह के हथियार को इस्तेमाल करना सीख जाएंगे।
संख्या बल में कम होने के कारण भारत विभाजन के बाद जब जब सांप्रदायिक झड़प हुई, प्रायः तब तक मुस्लिम आबादी का ही ज्यादा नुकसान हुआ। भारत के मुसलमान यह अच्छी तरह जानते हैं कि भविष्य में भी ऐसा ही होगा। इसलिए भी दक्षिण एशियाई क्षेत्र का साझा शासन-प्रशासन, साझी पुलिस और साझी अदालती व्यवस्था भारत के मुसलमानों के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करेगी। जब भारत, पाकिस्तान बांग्लादेश का फिर से एक साझा शासन-प्रशासन हो जाएगा, तो सांप्रदायिक झड़प की वजह ही समाप्त हो जाएगी। फिर भी यदि कहीं सांप्रदायिक झड़प इक्का-दुक्का होती भी है तो दक्षिण एशियाई पुलिस और दक्षिण एशियाई न्यायालय से पीड़ित लोगों को न्याय मिल पाएगा। क्योंकि दक्षिण एशियाई शासन प्रशासन सच्चे अर्थों में सभी धर्मों के लोगों को न्याय देगा, तभी उसका अस्तित्व बना रह सकेगा। सुरक्षा की गारंटी पाने की आशा के कारण भारत का हर मुसलमान अखंड भारत के प्रयास में हाथ बंटाएगा और वह तन मन धन से इस आंदोलन में कूदेगा और एक दिन एशियाई यूनियन का उसका सपना साकार होगा।