अखंड भारत के प्रेरणा स्रोत
महर्षि अरविन्द
15 अगस्त से एक दिन पूर्व 14 अगस्त 1947 को महर्षि अरविन्द ने रेडियो तिरुचापल्ली को राष्ट्र के नाम दिए सन्देश में कहा था "यह स्वतंत्रता तब तक अधूरी मानी जायेगी जब तक भारत भूमि की अखंडता को पूर्ण नहीं बनाया जाएगा। यह राष्ट्र अविभाजित है और इसे कभी भी खंडित नहीं किया जा सकता है। "
न्यायमूर्ति मोहम्मद करीम छागला
"मुझे वास्तविक शिकायत यह है कि राष्ट्रवादी मुसलमानों के प्रति न केलव कांग्रेस अपितु महात्मा गांधी भी उदासीन रहे। उन्होंने जिन्ना एवं उनके सांप्रदायिक अनुयायियों को ही महत्व दिया। मुझे पूरा विश्वास है कि यदि उन्होंने हमारा समर्थन किया होता तो हम जिन्ना की हर बात का खंडन कर देते और विभाजनवादी आंदोलन के आरंभ काल में पर्याप्त संख्या में मुसलमानों को राष्ट्रवादी बना देते।"
लोकनायक जयप्रकाश नारायण
हम सब अर्थात् भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश इन तीनों देशों में रहने वाले लोग वस्तुत: एक ही राष्ट्र भारत के वासी हैं। हमारी राजनीतिक इकाइयां भले ही भिन्न हों, परंतु हमारी राष्ट्रीयता एक ही रही है और वह है भारतीय।
ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान
मौलाना आज़ाद और ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान विभाजन के सबसे बड़े विरोधी थे और उन्होंने इसके ख़िलाफ़ पुरज़ोर तरीक़े से आवाज़ उठाई थी, लेकिन उनके अलावा इमारत-ए-शरिया के मौलाना सज्जाद, मौलाना हाफ़िज़-उर-रहमान, तुफ़ैल अहमद मंगलौरी जैसे कई और लोग थे जिन्होंने बहुत सक्रियता के साथ मुस्लिम लीग की विभाजनकारी राजनीति का विरोध किया
जिए सिंध के प्रणेता गुलाम मुर्तजा सैयद
"पिछले चालीस वर्ष का इतिहास इस बात का गवाह है कि विभाजन ने किसी को फायदा नहीं पहुंचाया। अगर आज भारत अपवने मूल रूप में अखंडित होता तो न केवल वह दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बन सकता था, बल्कि दुनिया में अमन-चैन कायम करने में उसकी खास भूमिका होती।"
दीन दयाल उपध्याय
दीनदयाल उपाध्याय ने 1962 में डॉ राम मनोहर लोहिया के साथ संयुक्त हस्ताक्षर से एक बयान जारी किया था जिसमें कहा गया था कि इतिहास ने यह सिद्ध किया है कि भारत पाकिस्तान का विभाजन कृतिम आधारों पर हुआ है। इसलिए इन देशों को फिर से मिलकर एक "महासंघ" बन जाना चाहिए।
महात्मा गांधी
3 जून 1947 को जब हिंदुस्तान के विभाजन की योजना की घोषणा हुई तो महात्मा गांधी की पहली प्रतिक्रिया डॉ राजेंद्र प्रसाद के समक्ष व्यक्त करते हुए कहा- "मैं इस योजना में केवल बुराइयां देखता हूं"।
गुलाम हुसैन हिदायतुल्लाह
1937-38 और फिर 1942 से 47 तक सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री रहे गुलाम हुसैन हिदायतुल्लाह ने हिंदुस्तान के विभाजन के विचार का विरोध किया था।
मास्टर तारा सिंह
मास्टर तारा सिंह के नेतृत्व में खालसा दीवान और शिरोमणि अकाली दल ने धर्म के आधार पर हिंदुस्तान के विभाजन की घोर निंदा की थी।
अब्दुल मतलिब मजूमदार
पूर्वी हिंदुस्तान आज के बांग्लादेश के जाने-माने अभिनेता अब्दुल मतलब मजूमदार ने हिंदू मुस्लिम एकता का समर्थन किया और हिंदुस्तान के विभाजन का सख्त विरोध किया।
अब्दुल समद खान
अब्दुल समद खान ने राष्ट्रवाद सिद्धांत का विरोध किया और संयुक्त भारत की वकालत की।
अल्लामा मशरीकी
अल्लामा मशरीकी खाकसार आंदोलन के नेता थे। उनका संगठन समाज में यह प्रचारित करता था कि धर्म के आधार पर दो राष्ट्रों का सिद्धांत अंग्रेजों द्वारा इस मुल्क पर अपना शासन बनाए रखने की साजिश के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। अल्लामा मशरीकी ने भविष्यवाणी किया था कि धर्म के आधार पर विभाजन सीमा पार उग्रवाद को और धार्मिक अंधविश्वास और कट्टरता को बढ़ावा देगा। उन्होंने कहा कि विभाजन का समर्थन करने वाले मुस्लिम नेता सत्ता के भूखे हैं और इसीलिए अंग्रेजों की मदद कर रहे हैं।
मोहम्मद अब्दुल कलाम आजाद
हिंदुस्तान के विभाजन पर पहली प्रतिक्रिया देते हुए मोहम्मद अबुल कलाम आजाद ने कहा था कि- "पाकिस्तान बनना केवल भारत के लिए ही घातक नहीं है अभी तो मुसलमानों के लिए भी घातक है।"
सैयद हुसैन अहमद मदनी
सैयद हुसैन अहमद मदनी ने एक पुस्तक लिखा मुत्ताहिदा कौमियत और इस्लाम। इस पुस्तक में उन्होंने हिंदू मुसलमानों की शादी संस्कृति का विस्तृत विवरण पेश किया और भारत-पाकिस्तान के विभाजन का विरोध किया।
अल्लाह बख्श सूम्रो
तत्कालीन सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री अल्लाह बख्श सुमरो ने हिंदुस्तान का विभाजन का सख्त विरोध किया। उन्होंने ऑल इंडिया आजाद मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के अध्यक्षता किया। उन्होंने कहा था कि धर्म के आधार पर मुसलमानों द्वारा अलग राष्ट्र की मांग करना इस्लाम के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
अल्ताफ हुसैन
आज के पाकिस्तान के क्षेत्र के बड़े मुसलमान नेता अल्ताफ हुसैन ने मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के नाम से एक राजनीतिक पार्टी बनाया था। उन्होंने हिंदुस्तान के विभाजन को "ग्रेटेस्ट ब्लेंडर" करार दिया था। उन्होंने कहा कि यह विभाजन केवल देशों का नही अपितु , रक्त का विभाजन, संस्कृति का विभाजन, भाईचारा और रिश्ते का विभाजन करार दिया।
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने धर्म के आधार पर हिंदुस्तान के विरोध विरोध को "बांटो और राज करो" की साम्राज्यवादी नीति के तहत अंग्रेजों की एक साजिश करार दिया था और उन्होंने अखंड हिंदुस्तान का नारा दिया था।
ख्वाजा अतिकुल्ला
ढाका के नवाब के भाई ख्वाजा अतीक उल्लाह ने हिंदुस्तान के विभाजन के विरोध में 25000 लोगों के हस्ताक्षर इकट्ठा करके एक ज्ञापन ब्रिटिश सरकार को सौंपा था और हिंदुस्तान के विभाजन का विरोध किया था।
विभाजन का विरोध करने वाली राजनीतिक पार्टियां
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत विभाजन का विरोध किया और देश के विभाजन के विरोध में 15 अगस्त 1947 के स्वतंत्रता दिवस समारोह में हिस्सा नहीं लिया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत के विभाजन का दृढ़ता से विरोध किया, हालांकि बाद में कैबिनेट मिशन योजना की विफलता के बाद इसे अनिच्छा से स्वीकार कर लिया ।
कृषक प्रजा पार्टी
कृषक प्रजा पार्टी ने विभाजन की योजना के विचार को "बेतुका और निरर्थक" बताया ।
सिंध युनाइटेड पार्टी
सिंध युनाइटेड पार्टी ने कहा कि "हमारे देश में हमें जो भी धर्मों को एक साथ रहना चाहिए, वह एक संयुक्त परिवार के कई भाइयों के संबंध होने चाहिए, जिनमें से विभिन्न सदस्य अपने विश्वास का दावा करने के लिए स्वतंत्र हैं क्योंकि वे बिना किसी जाने या बाधा के चाहते हैं और जिनमें से उनकी संयुक्त संपत्ति का समान लाभ प्राप्त करते हैं ।
यूनियनिस्ट पार्टी (पंजाब)
मुस्लिमों, हिंदुओं और सिखों का आधार रखने वाली यूनियनिस्ट पार्टी (पंजाब) ने पंजाबी अस्मिता को एक धार्मिक पहचान से ज्यादा महत्वपूर्ण के रूप में देखने के नजरिए से भारत के विभाजन का विरोध किया।
अखिल भारतीय जम्हूर मुस्लिम लीग
गफूर अहमद एजाज ने संयुक्त भारत (१९४०) का समर्थन करने के लिए अखिल भारतीय जम्हूर मुस्लिम लीग की स्थापना की थी । १९४० में, जिन्ना की पाकिस्तान की योजना का विरोध करने के लिए" यह पार्टी बनाई गयी थी.
अखिल भारतीय मोमिन सम्मेलन
अखिल भारतीय मोमिन सम्मेलन ने खुद को उच्च वर्ग के मुसलमानों के बजाय आम के हितों को मुखर करने के रूप में देखा और १९४० में भारत विभाजन के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया । इसमें कहा गया है, "विभाजन योजना न केवल अव्यवहारिक और अदेशभक्तिपूर्ण थी बल्कि पूरी तरह से अदेशभक्तिपूर्ण थी बल्कि पूरी तरह से अविज्ञी और अप्राकृतिक थी, क्योंकि भारत के विभिन्न प्रांतों की भौगोलिक स्थिति और हिंदुओं और मुसलमानों की आपस में आबादी इस प्रस्ताव के खिलाफ है और क्योंकि दोनों समुदाय सदियों से एक साथ रह रहे हैं, और उनके बीच कई चीजें आम हैं ।
अखिल भारतीय मुस्लिम मजलिस
अखिल भारतीय मुस्लिम मजलिस ने भारत के विभाजन का विरोध करते हुए "अव्यवहारिक" कहा था
अखिल भारतीय शिया राजनीतिक सम्मेलन
अखिल भारतीय शिया राजनीतिक सम्मेलन में औपनिवेशिक भारत के विभाजन के खिलाफ होने के नाते पाकिस्तान बनाने के विचार का विरोध किया गया । इसने आम मतदाताओं का भी समर्थन किया ।
अंजुमन-ए-वतन बलूचिस्तान
अंजुमन-ए-वतन बलूचिस्तान ने खुद को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ संबद्ध किया और भारत के विभाजन का विरोध किया ।
सेंट्रल खालसा यंग मेन यूनियन
सेंट्रल खालसा यंग मेन यूनियन ने अन्य सिख संगठनों की तरह पश्चिमोत्तर भारत में एक अलग मुस्लिम राज्य के निर्माण के लिए अपना "स्पष्ट विरोध" घोषित किया ।
चीफ खालसा दीवान
चीफ खालसा दीवान ने अन्य सिख संगठनों की तरह पश्चिमोत्तर भारत में एक अलग मुस्लिम राज्य के निर्माण के लिए अपना "स्पष्ट विरोध" घोषित किया ।
अखिल भारत हिंदू महासभा
अखिल भारत हिंदू महासभा ने भारत विभाजन का विरोध किया और देश विभाजन के विरोध में 15 अगस्त 1947 के स्वतंत्रता दिवस समारोह में हिस्सा नहीं लिया।
जमीयत अहल-ए-हदीस
जमीयत अहल-ए-हदीस अखिल भारतीय आजाद मुस्लिम सम्मेलन की सदस्य पार्टी थी, जिसने भारत विभाजन का विरोध किया था।
मजलिस-ए-अहरार-उल-इस्लाम
मजलिस-ए-अहरार-उल-इस्लाम ने १९४३ में एक प्रस्ताव पारित कर खुद को विभाजन के खिलाफ घोषित किया और "जिन्ना को उनकी प्रतिष्ठा को बदनाम करने की कोशिश में काफिर के रूप में चित्रित करके अपनी आपत्तियों में एक सांप्रदायिक तत्व पेश किया ।