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क्या अखंड भारत बनने से सभी देशों पर हिंदुओं का राज हो जाएगा?

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हिंदुओं का राज शब्द जब उच्चारित किया जाता है तो ऐसा लगता है कि हिंदुओं का राज का अर्थ भारत की एक बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा का राज है। यह मात्र गलतफहमी है। भाजपा हिंदुओं की आत्मा की आवाज है,ऐसा केवल वही लोग समझते हैं जो हिंदुओं को और हिंदुत्व को नहीं समझते। भाजपा ज्यादा से ज्यादा हिंदुओं की ब्राह्मणवादी आत्मा की आवाज है। हिंदुओं की कुल जनसंख्या में ब्राह्मणों की जनसंख्या मात्र 5% है। बाकी 95% हिंदू समाज ब्राह्मणवादी संस्कारों से अलग है। वह सामाजिक और आर्थिक समानता में विश्वास करता है। वह वर्ण व्यवस्था का विरोधी है। वह ब्राह्मणवादी अंधविश्वासों का विरोधी है। वह मूर्ति पूजा में श्रद्धा नहीं रखता। वह अस्पृश्यता और समाज के सीढ़ीदार व्यवस्था को नहीं मानता। यानी 95% हिंदू समाज समाजवादी संस्कारों से लैस है। समाजवादी संस्कारों वाले व्यक्ति से और समाजवादी संस्कारों वाले समुदाय से किसी दूसरे समुदाय को कोई खतरा नहीं हो सकता। वह दूसरा समुदाय चाहे मुस्लिम समुदाय हो, बौद्ध समुदाय हो, जैन समुदाय हो, सिख समुदाय हो या फिर कोई अन्य समुदाय हो। समाजवादी संस्कार वाला व्यक्ति सभी को अपना मानता है।

ब्रह्मणवादी हिंदुओं का समाजवादी हिंदुओं के साथ गहरा टकराव है। ब्राह्मणवादी हिंदू 95% समाजवादी हिंदुओं को वामपंथी कहकर उनको गालियां देते हैं, अभद्र शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। उनका बस चले तो इन 9% लोगों का अस्तित्व नष्ट कर दें। किंतु 95% लोगों को नष्ट करना इतना आसान नहीं है। इसलिए समाजवादी और वामपंथी हिंदू जीवित है और लगातार पल बढ़ रहे हैं। हिंदुओं से खतरा महसूस करने की बात बिल्कुल नई नहीं है। जब से भारतीय जनता पार्टी नाम की एक राजनीतिक पार्टी ने भारत में सत्ता की बागडोर संभाली है, तब से हिंदुओं की छवि पूरी दुनिया में खराब हुई है। लेकिन पूरी दुनिया को यह समझना चाहिए कि हिंदू समाज वैसा नहीं है,जैसा भारतीय जनता पार्टी ने दुनिया के सामने परोसा है। भारतीय जनता पार्टी वह पार्टी है जिसकी विचारधारा भारत के विभाजन के दौरान पैदा हुई थी और विभाजन से पहले की जो परिस्थितियां थी, भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक विचार उस जमीन में उगे हुए हैं।

अब लगभग 70- 80 साल बाद भारत की और विश्व की परिस्थितियां पूरी तरह बदल गई है। राष्ट्रवाद की यूरोपियन परिभाषा बदल गई है। सामाजिक और आर्थिक विषमता समाज के लिए खतरा माने जाने लगे हैं। अस्पृश्यता को संवैधानिक तौर पर गलत करार दे दिया गया है। फासीवाद और नाजीवाद दुनिया में बदनाम हो चुके हैं। किंतु भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा जब पैदा हुई तब फासीवाद और नाजीवाद का झंडा पूरी दुनिया में बुलंद था हिटलर और मुसोलिनी पूरी दुनिया के सबसे ताकतवर नेता दिखाई पड़ रहे थे। किंतु बाद मैं उनका बहुत बुरा हश्र हुआ। लेकिन इन दोनों तानाशाहों ने अपने-अपने देश को बर्बाद कर दिया। इन के अपने ही देशों में अब दोनों तानाशाहों का नाम लेवा कोई नहीं बचा है। इनके अपने देश के लोग इतिहास के उस कालखंड को दो सपनों की तरह देखने लगे हैं। वही सपना भारतीय जनता पार्टी भारत के सभी लोगों को दिखाना चाहती है। किंतु हिटलर और मुसोलिनी इसलिए कामयाब हुए कि उनकी विचारधारा का नकारात्मक पक्ष दुनिया को मालूम नहीं था। किंतु आज नाजीवाद और फासीवाद के खतरे से पूरी दुनिया अच्छी तरह परिचित हो चुकी है। और सोशल मीडिया इन खतरों को धीरे-धीरे लोगों के सामने पहुंचा रही है जो हिटलर और मुसोलिनी के युग में संभव नहीं था।

ऐसा नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी के लोग उक्त तथ्यों से अनजान है। भारतीय जनता पार्टी के लोग भी अपनी पार्टी को ब्रह्मणवादी चंगुल से मुक्त करके समाजवादी हिंदुओं के शरण में जाने के लिए छटपटा रहे हैं। यह घटना देर-सवेर जरूर घटेगी और स्वयं भारतीय जनता पार्टी अपने इतिहास से नफरत करेगी। अपने फासीवादी कालखंड को इतिहास से मिटाने की कोशिश खुद अपने हाथों करेगी। क्योंकि ऐसा करके ही वह सत्ता में बनी रह सकेगी और 95% वामपंथी और समाजवादी हिंदुओं का समर्थन हासिल कर पाएगी। भारतीय जनता पार्टी के लोग बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि उसकी विचारधारा एक एक्सपायर दवा बन चुकी है और एक्सपायर दवा को बहुत देर तक बेचा नहीं जा सकता। जो कंपनी एक्सपायर दवा को रोगियों के बीच बेचेगी, उस कंपनी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। समाजवादी हिंदू समावेशी प्रकृति के हैं। यह दूसरों के साथ भाईचारा करने और दूसरों को अपना बना लेने की कला जानते हैं। इतिहास में वामपंथी हिंदुओं ने हिंदू समाज के आकार को बहुत बड़ा कर दिया है। पहले कृष्ण और राम के मानने वाले लोग आपस में दंगा-फसाद करते थे। किंतु राम और कृष्ण की वामपंथी व्याख्या करके समाजवादी हिंदुओं ने राम और कृष्ण के अनुयायियों में समझौता करा दिया और यह दोनों संप्रदाय इस तरह घुल मिल गए कि आज इनको अलग-अलग पहचानना मुश्किल है। आदिवासियों के देवता शंकर और ब्राह्मण वादियों के देवता विष्णु के बीच भी वामपंथी हिंदुओं ने इस तरह का मेलजोल करा दिया कि आज शैव संप्रदाय और वैष्णव संप्रदाय इतिहास के विषय बन चुके हैं। इन दोनों संप्रदायों को ढूंढ पाना, पहचान पाना और इन को अलग -अलग कर पाना अब संभव नहीं रहा।

वामपंथी हिंदू, जैन धर्म बौद्ध धर्म, और सिख धर्म को यहां तक की मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले आर्य समाज को अपना ही मानते हैं। “मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ने”- वामपंथी हिंदू इस सिद्धांत में विश्वास करते हैं। इसलिए दूसरे विचारों के प्रति, यहां तक कि अपने से 180 डिग्री विपरीत विचारों के प्रति सहिष्णुता वामपंथी हिंदुओं की रग-रग में बसी हुई है। अहिंसा, भाईचारा, मानवतावाद, वसुधैव कुटुंबकम जैसे सिद्धांत और संस्कार समाजवादी हिंदू समाज की आत्मा है। जिस समाज के 95% लोग ऐसी विचारधारा में विश्वास करते हैं,उस समाज से खतरा महसूस करना अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा है। इसलिए समाजवादी हिंदुओं का भारत ही नहीं पूरी दुनिया के मुसलमानों के साथ हमेशा से दोस्ताना संबंध रहा और आज भी है। यह दोस्ताना संबंध भविष्य में भी रहेगा। क्योंकि 5% ब्राह्मणवादी हिंदू 95% समाजवादी हिंदुओं की सभ्यता और संस्कृति को नष्ट नहीं कर सकते। ब्रह्मणवादी हिंदू सदा सदा से हिंदुत्व की परिभाषा बदलते रहे हैं। कभी हिंदुत्व को संस्कृति कहते हैं तो कभी धर्म। कानून की भाषा में हिंदू संस्कृति नहीं है एक धर्म है। ठीक वैसा ही धर्म जैसे इस्लाम और ईसाई धर्म हैं।

सरकार के कागजातों में धर्म के कॉलम में हिंदू लिखने की 70 साल पुरानी परंपरा है। अगर हिंदू धर्म ना होता तो सरकारी कागजातों में धर्म के कालम में हिंदू लिखने की परंपरा क्यों होती और सरकार ने इस को कानूनी मान्यता क्यों दिया होता? किंतु हिंदुओं के ब्रह्मणवादी सिद्धांतकार अपने आप को ऊंचा साबित करने के लिए इस्लाम और ईसाइयों की बराबरी में अपने आप को खड़ा नहीं करना चाहते। इसीलिए वह हिंदू शब्द का अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग अर्थ बताते हैं। कभी हिंदू को धर्म बताते हैं, तो कभी हिंदू को संस्कृति बताते हैं। कभी हिंदुत्व को भौतिक विज्ञान का पर्यायवाची बता देते हैं,तो कभी हिंदुत्व को आस्थाओं की अभिव्यक्ति बताते हैं….।

कुल मिलाकर आशय यह है कि हिंदू शब्द का कोई एक स्थिर अर्थ नहीं है। यह उद्विकासीय है। भविष्य में हिंदूकुश पर्वत के पूर्व में रहने वाली समस्त जनसंख्या को हिंदू कह दिया जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। हिंदुकुश पर्वत के पूर्व में संपूर्ण दक्षिण एशिया है और संपूर्ण दक्षिण एशियाई देश हैं। इन देशों में रहने वाले सभी हिंदू, सभी मुसलमान, सभी जैन, सभी बौद्ध सभी शिक्ख, सभी इसाई और सभी जनजातियां हिंदू हैं। हिंदू का ऐसा अर्थ करना बहुत मुश्किल काम नहीं है। भविष्य में ब्राह्मणवादी हिंदुत्व से मुकाबला करने की कोशिश में समाजवादी हिंदू ऐसा ही करेंगे। क्योंकि समाजवादी हिंदुओं के रग-रग में सबको अपना मानने का संस्कार रचा बसा है। ऐसा होता भी है, तो यह नहीं समझना चाहिए कि हिंदू समाज बाकी समाजों को हजम कर ले रहा है। ऐसा होता है तो हिंदू शब्द एक धार्मिक शब्द होने की बजाय एक भौगोलिक शब्द हो जाएगा। भारत,पाकिस्तान, व बांग्लादेश के साझे नक्शे को हिंदुस्तान कहने की परंपरा बहुत पहले से ही है। इसका यह मतलब नहीं है कि इस नक्शे में केवल हिंदू रहते थे, मुसलमान या अन्य धर्मों के मानने वाले नहीं रहते थे।

वास्तव में हिंदुस्तान के शब्द से ही यह अर्थ निकलता है कि यह किसी धर्म को संबोधित नहीं करता। अपितु यह भौगोलिक क्षेत्र को संबोधित करता है। इसलिए दक्षिण एशिया के पूरे परिक्षेत्र हो अखंड भारत कहने के बजाय दोबारा से हिंदुस्तान कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इसका यह अर्थ नहीं समझना चाहिए कि दक्षिण एशिया क्षेत्र में केवल ब्राह्मणवादी रहेंगे और किसी को रहने का अधिकार नहीं है। हिंदू शब्द से जो डर पैदा हो गया है, यह मात्र हिंदूफोबिया है। न तो हिंदू शब्द इतना डरावना है, ना ही हिंदू समाज इतना डरावना है। ज्यादा से ज्यादा हिंदू समाज का 5% ब्राह्मणवादी हिस्सा डरावना हो सकता है, जो हिटलर और मुसोलिनी को अपना आदर्श मानता है और उनके ही संस्कारों को अपनाने का हिमायती है। 5% हिंदू जो दूसरे धर्मावलंबियों और दूसरे देशों के लिए खतरा हैं, तो ऐसा सभी धर्म और सभी देशों में है। इस्लाम में भी हिटलर और मुसोलिनी को अपना आदर्श मानने वाले लोग हैं। ईसाइयों में भी ऐसे लोग हैं।

इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो हिंदू समाज अन्य धार्मिक समाजों से बहुत अलग नहीं है। किंतु 95% समाजवादी और वामपंथी हिंदू समाज सभी धर्मों के मानने वालों को अपनाही मानता है। जो हिंदू मुसलमानों को अपने ही धर्म का व्यक्ति मानता हो, जो हिंदू ईसाइयों को अपने ही धर्म का व्यक्ति मानता हो, जो हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समाज को अपने ही धर्म का व्यक्ति मानता हो उसी से खतरा कैसा? वह तो सच्चे अर्थों में धर्म समदर्शी व्यक्ति है। उसकी आंखों में जो तेज है,उस तेज से वह सभी धर्मों में एकता के तत्व देख पाता है। लेकिन आंखों का यह तेज जिन लोगों के आंखों में नहीं है, वह दूसरे धर्मों के लोगों को अपना कैसे माने? संतो की दृष्टि सब के पास कैसे आ सकती है? वसुधा को कुटुंब मानने वाले हिंदू वास्तव में वामपंथी हिंदू ही थे और उन्हीं के संस्कारों के कारण आज हिंदू समाज का अस्तित्व है।

अगर वसुधा को कुटुम्ब मानने वाले संस्कार हिंदुओं में ना होते, तो राम और कृष्ण की पूजा करने वाले लोग आज एकजुट ना होते। शंकर और विष्णु की पूजा करने वाले लोग आज एक दूसरे से वैसे ही दंगा फसाद कर रहे होते जैसे हिंदू-मुसलमानों में आज दंगे -फसाद होते रहते हैं जब शंकर और विष्णु के दो दंगाई संप्रदायों को एक किया जा सकता है, तब हिंदू और मुसलमान भी दो संप्रदाय हैं, इनको एक क्यों नहीं किया जा सकता? यदि हिंदू- मुसलमान एक हो सकते हैं, तो भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक क्यों नहीं हो सकते? यदि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक हो सकते हैं, तो अखंड भारत बनाने अथवा दक्षिण एशियाई देशों का यूनियन बनने में कोई बाधा ही नहीं है। 5% ब्रह्मणवादी हिंदू दक्षिण एशियाई यूनियन के लिए किसी तरह का खतरा नहीं बन सकते। क्योंकि यह 5% लोग यूनियन की नागरिकता लेना ही पसंद नहीं करेंगे वह अपने देश में सीमित रहेंगे। जिस प्रकार कट्टर मुसलमानों को यूनियन की सरकार में वोट का अधिकार नहीं होगा, उसी प्रकार इन 5% कट्टर हिंदुओं को भी यूनियन की सरकार के गठन में वोट का अधिकार प्राप्त नहीं होगा। जो लोग यह समझते हैं कि बौद्ध समाज को हिंदू घोषित करके ब्रह्मणवादी हिंदू लोग अपनी जनसंख्या का आकार बहुत बड़ा बना लेंगे और इस्लाम पर भारी पड़ जाएंगे, उनका निष्कर्ष शत प्रतिशत गलत है। क्योंकि बौद्ध समाज एक प्रगतिशील समाज शुरू से रहा है और ब्राह्मणवादी हिंदुत्व को शुरू से वह एक पिछड़ी विचारधारा मानता रहा है, आज भी मानता है। मास्टर की डिग्री ले चुका व्यक्ति अपने आप को फिर से स्नातक की क्लास में देखना पसंद क्यों करेगा? बौद्ध समाज को ब्राह्मणवादी हिंदू हजम कर लेंगे,इस सपने के विपरीत घटना-घट सकती है। बौद्ध समाज इन ब्राह्मणवादी हिंदुओं को सुधारने के लिए विवश कर सकता है। क्योंकि चीन,भारत, श्रीलंका और वर्मा में बौद्ध समाज की जनसंख्या बहुत बड़ी है। यदि हिंदू समाज और बौद्ध समाज के बीच दोस्ती होती है तो केवल बहुत ऊंचे संस्कारों पर ही है दोस्ती संभव है।

इतने उच्च स्तरीय संस्कारों के व्यक्ति से न तो इस्लाम मानने वालों को डरने की जरूरत होगी ना किसी अन्य धर्मावलंबियों को डरने की जरूरत होगी। यूनियन बनने से देशों के घरेलू जनसंख्या के आंकड़े प्रभावित नहीं होंगे। क्योंकि किसी व्यक्ति पर यूनियन की नागरिकता लेने का कोई दबाव नहीं होगा। यूनियन की सरकार ऐसा कोई कानून नहीं बना सकती जिसका समर्थन देशों की सरकारें ना करती हों। इसलिए हिंदू समाज यूनियन की सरकार का उपयोग करके किसी भी प्रकार अपनी आस्थाओं को दूसरे धर्मावलंबियों पर थोप नहीं सकता। यूनियन की सरकार में समाजवादी हिंदुओं, प्रगतिशील मुसलमानों और बौद्ध समाज का बहुमत हो सकता है। यह सभी लोग धर्मनिरपेक्ष संस्कार के और मानवतावादी संस्कार के होंगे। किंतु बहुमत के बावजूद भी यह सभी लोग मिलकर कोई कानून नहीं बना सकते। कानून बनाने के लिए यूनियन की प्रादेशिक सभा और यूनियन की देशीय सभा की मंजूरी लेना आवश्यक होगा। इस्लामिक समाज के लिए यह और अच्छा होगा। क्योंकि यूनियन की सरकार में होने वाले निर्णय में अपनी भागीदारी बढ़ाने के लिए इस्लामिक समाज को अपनी जनसंख्या के अधिक से अधिक हिस्से को यूनियन की नागरिकता दिलानी पड़ेगी। ऐसा तभी हो पाएगा जब इस्लामिक समाज अपने अंदर एक आत्म सुधार का आंदोलन चलाएं और वह अपनी कट्टरता से अपने आप को उबारे। यूनियन के फायदे को देखकर इस्लामिक समाज ऐसा करने से पीछे नहीं रहेगा।

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