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अखंड भारत बनाकर क्या भारत सभी पड़ोसी देशों पर कब्जा नहीं कर लेगा?

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यह मात्र कोरी कल्पना है कि यदि दक्षिण एशियाई देशों की एक यूनियन बन जाती है, तो इस यूनियन का सबसे बड़ा देश यानी भारत अन्य सभी देशों पर कब्जा कर लेगा। भारत में जनसंख्या अधिक है, यह बात सत्य है और यह भी सत्य है कि यूनियन की नागरिकता में सबसे बड़ी संख्या भारत से ही होगी। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि अपनी जनसंख्या की ताकत के बल पर भारत की सरकार अन्य देशों की सरकारों को कब्जा कर लेगी।

इसका कारण यह है कि दक्षिण एशियाई देशों की यूनियन बनने के बाद यूनियन की नागरिकता सभी व्यक्तियों को देने का प्रस्ताव नहीं है। यह नागरिकता केवल उन्हीं लोगों को प्राप्त होगी जो लोग यूनियन की शर्तों को मानेंगे, चाहे वह किसी भी देश के हों या किसी भी धर्म के मानने वाले हों।आखिर अगर एक देश दूसरे देश को कब्जा ही करेगा,तो फिर यूनियन की सरकार क्या करेगी? क्या वह यह सब देखते रहेगी?

यूनियन की संसद में सभी देशों की राज्यसभाओं की तरह ही एक सभा होगी, जिसमें सभी देशों के प्रतिनिधि होंगे, वो किसी भी देश के साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने के लिए अपनी मुहर क्यों लगाएंगे? आखिर यूनियन तो वही करेगी जो देशों की सरकारें चाहेंगी। देशों की सरकारें अपने आप को कब्जा कराने के लिए कानून क्यों पास करायेंगी?

दक्षिण एशियाई यूनियन के संविधान में साम्राज्यवाद के लिए कोई जगह नहीं होगी। क्योंकि इसकी संसद त्रिस्तरीय होगी। पहला स्तर सभी देशों में मौजूद प्रदेशों के प्रतिनिधियों का होगा। दूसरा स्तर सभी देशों के प्रतिनिधियों का होगा। और तीसरा स्तर दक्षिण एशियाई नागरिकों के प्रतिनिधियों का होगा। जिस प्रकार आज भारत में राज्यसभा और लोकसभा हैं। उसी प्रकार दक्षिण एशिया यूनियन में दो की जगह 3 सभाएं होंगी। जब तक तीनों सभाएं यानी अखंड भारत के तीनों घटक किसी विधेयक को पारित नहीं करते तब तक वह विधेयक कानून नहीं बनेगा। जब तक कोई विधेयक कानून नहीं बनता, तब तक उस प्रस्ताव पर पुलिस और सेना अमल नहीं कर सकती।

यानी स्पष्ट है की अखंड भारत की सरकार क्या करेगी, इसका दो तिहाई हिस्सा देशों के ऊपर और देशों में मौजूद प्रदेशों के ऊपर निर्भर करेगा। कोई भी देश और कोई भी प्रदेश क्यों चाहेगा कि उसके ऊपर कोई दूसरा देश कब्जा कर ले या कोई दूसरा प्रदेश कब्जा कर ले? अतः भारत के नागरिकों और भारत में रहने वाले दक्षिण एशियाई नागरिकों के बीच अंतर समझना होगा। भारत के नागरिकों से खतरा हो सकता है, किंतु भारत में रहने वाले दक्षिण एशियाई नागरिकों से खतरा नहीं हो सकता। भारतीय सेना से भी डरने की जरूरत नहीं है। क्योंकि जो लोग भारतीय सेना में शामिल हैं, कुछ वर्षों में ही वह अवकाश प्राप्त हो जाएंगे। नई भर्ती में इस बात का ध्यान रखा जाएगा, कि सेना में केवल दक्षिण एशियाई नागरिकता प्राप्त व्यक्ति ही भर्ती किए जाएं। चाहे वह किसी भी देश के क्यों ना हो। इसलिए अखंड भारत की सेना में भी जनसंख्या अधिक होने के नाते भारत देश की धरती पर रहने वाले लोगों की संख्या अधिक होगी।

किंतु ऐसे लोगों को भारतीय मानकर चलना ठीक नहीं होगा। यह सभी हिंदुस्तानी होंगे। यह सभी अखंड भारत से प्रेम करने वाले होंगे। यह सभी वे लोग होंगे जो दक्षिण एशियाई क्षेत्र में सभी देशों को अपना मानते होंगे। सेना में भर्ती के समय जो योग्यता और शर्तें निर्धारित की जाएंगी उसमें इस बात का ध्यान रखा जाएगा की संकीर्ण राष्ट्रवादी लोग यूनियन की सेना में भर्ती ना होने पाए। वृहत्तर राष्ट्रवादी लोग ही यूनियन की सेना में भर्ती हों। दक्षिण एशियाई क्षेत्र में जो छोटे देश हैं उनको तो भारत का एहसानमंद होना चाहिए कि उनकी सुरक्षा के लिए सबसे अधिक संख्या में जो सैनिक तैनात हैं, वह भारत देश की धरती पर रहते हैं।

भारत देश बड़ा है, भारत का क्षेत्रफल बड़ा है, भारत देश की जनसंख्या का आकार बड़ा है। इसलिए भारत देश की जिम्मेदारियां भी अखंड भारत में सबसे बड़ी है। अन्य देशों की सुरक्षा करने का सबसे बड़ा बोझ भारत पर गी होगा। इसलिए भारत को यूनियन में शामिल होने से बाकी सभी देश के लोगों को सुरक्षित महसूस करना चाहिए, न कि डरना चाहिए। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दक्षिण एशियाई नागरिकता केवल वही व्यक्ति पसंद करेगा जिसकी सोच साम्राज्यवादी नहीं है। जो मानवतावादी है, जो सभी देशों के साथ प्यार करता है, जो सभी देशों के नागरिकों को अपना मानता है, आखिर ऐसे लोगों से डरने की क्या जरूरत है? ऐसे लोगों की भावना मां बाप के भावना जैसी होती है। जैसे अपने मां-बाप अपने बच्चों से प्यार करते हैं, उसी तरह से दक्षिण एशियाई नागरिकता लेने वाले लोग दक्षिण एशिया के क्षेत्र में रहने वाले सभी नागरिकों के मां-बाप की भूमिका में होंगे। बच्चों को अपने मां-बाप से डरने की क्या जरूरत है? जो मां-बाप की भावना नहीं रखते वह दक्षिण एशिया यूनियन बनने के बाद भी दक्षिण एशियाई नागरिकता नहीं लेंगे। यदि उन्होंने नागरिकता ले लिया लेकिन किसी दूसरे देश को कब्जा करने की मानसिकता नहीं छोड़ा तो वह ऐसा कोई ग़लत आचरण जीवन में जरूर करेंगे जिसके कारण उनके नागरिकता समाप्त हो जाएगी। परिणाम स्वरूप ऐसे लोग वापस अपने देश के नागरिक बन जाएंगे।

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