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सांस्कृतिक राष्ट्रीयता की मुक्ति के लिए अंतर्राष्ट्रीय संधि

यह सर्व विदित है कि 1947 में भारत की सांस्कृतिक एकता को खंड-खंड करते हुए अंग्रेजों ने हमें जो भौगोलिक भारत सौंपा था। उस छोटे से भौगोलिक भारत की शीशी में विशाल सांस्कृतिक भारत की आत्मा का समा पाना संभव नहीं था। काया और आत्मा के इसी बेमेल रिश्ते के कारण लोगों को तमाम दुःख उठाने पड़ रहे हैं। इंटरनेट की खोज के कारण भारत की वैश्विक सस्कृति और वैश्विक राष्ट्रीयता का वृक्ष बहुत बड़ा हो चुका है। किंतु दुर्भाग्यवश भारत की सांस्कृतिक आत्मा को न तो ठीक से समझा गया और न तो भारत की सांस्कृतिक राष्ट्रीयता की मुक्ति के लिए वैश्विक कार्यक्रम ही चलाया गया। भारत की सांस्कृतिक समझ रखने वाला हर व्यक्ति जानता है कि भारत की वैश्विक संस्कृति का भौगोलिक आकार वहीं है, जिसकी ओर ऋग्वेद में इशारा किया गया है। ऋग्वेद की दिव्य दृष्टि है-
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

संपूर्ण वसुधा अतीत में केवल उदार हृदय के लोगों के लिए कुटुंब यानी राष्ट्र थी। किंतु इंटरनेट और सोशल मीडिया की तकनीक आने के बाद अब यह वसुधा सबके लिए राष्ट्र बन चुकी है। कुटुंब में जितने लोग शामिल होते हैं, उनके कारण कुटुंब का लाभ भी होता है और कुछ नकारात्मक तत्वों द्वारा कुटुंब का नुकसान भी होता है। इन्हीं नुकसानों से कुटुंब यानी राष्ट्र की सुरक्षा करने के लिए सरकारों का गठन किया गया था।

आज जब कुटुंब विश्वव्यापी हो गया, तो ऋग्वेद की सांस्कृतिक दृष्टि के अनुरूप सरकार विश्वव्यापी क्यों नहीं हुई? अगर वैश्विक राष्ट्रीयता को संवैधानिक मान्यता देकर सरकार का तंत्र भी विश्वव्यापी हो जाता, तो वैश्विक आजादी का लाभ भ्रष्टाचारी और आतंकवादी ही न उठाते। तब संपूर्ण विश्व की पुलिस, आयकर विभाग, पर्यावरण संरक्षण विभाग, न्यायालय और युद्ध के रोकथाम विभाग भी वैश्विक आजादी का लाभ उठाते। तब स्वीटजरलैंड की बैंकों में भारत सहित दुनिया भर के भ्रष्टाचारियों का पैसा सुरक्षित नहीं रहता। तब सभी देशों के लोगों को अपने पड़ोसी देशों द्वारा थोपे गए युद्ध से सुरक्षा पाने का, युद्ध के कारण होने वाले जानमाल के नुकसान से सुरक्षा पाने का, निर्यात की पतनस्पर्धा में देशों के बहुसंख्यक लोगों को गरीबी, कुपोषण, बीमारी, अशिक्षा और बेरोजगारी की कैद से मुक्ति पाने का, अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार से और आतंकवाद से सुरक्षा पाने का और पर्यावरण संतुलन के माध्यम से धरती मां को स्वस्थ रखने का वैश्विक अधिकार भी मिल जाता। किंतु दुर्भाग्यवष इस दिशा में काम नही हो सका। इसीलिए केवल हमारे ही देश के नहीं, दुनिया में अधिकांश देशों के अधिकांश लोग अंतर्राष्ट्रीय अन्याय और अत्याचार के दलदल में धंस चुके हैं। इसलिए ऋग्वेद में बताए गए मानवतावादी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को अंतर्राष्ट्रीय संधियों द्वारा संवैधानिक मान्यता देने के सिवा अब भारत जैसे राष्ट्रों के पास अन्य कोई भी विकल्प नहीं बचा है। इस विषय में उठने वाले तमाम प्रश्नों और उनके उत्तरों के बारे में विस्तार से जानने के लिए इसी विषय पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों और उनके उत्तरों को देखा जा सकता हैं।

उक्त विश्लेषण के आधार पर काम करने के लिए राजनीतिक व आर्थिक सुधारो पर और वैज्ञानिक अध्यात्म पर दर्जनों पुस्तकों के लेखक श्री विश्वात्मा और अन्य समान विचारधारा के लोगों ने विश्व परिवर्तन मिशन के नाम से एक संगठन की शुरूआत सन् 2019 में किया था। श्री विश्वात्मा जी ‘‘भरत गांधी’’ के नाम से ज्यादा लोकप्रिय है। संभवत आप भी उनको इसी नाम से जानते होंगे। यूट्यूब पर उनके सैकड़ो ज्ञानवर्धक वीडियो हैं। वह शादी-विवाह, धंधा बिजनेस और पारिवारिक जीवन से दूर रहकर मानवतावादी राष्ट्रवाद के लिए गत 30 वर्षों से लगातार काम कर रहे हैं। उन्होंने इसके लिए सन 2006 से अब तक कई बार दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों को पत्र लिखा है। अभी-अभी फरवरी 2024 में काठमांडू में 92 देशों के वर्ल्ड सोशल फोरम के सम्मेलन के दौरान उन्होंने यूरोपीय यूनियन की तरह दक्षिण एशियाई देशों के यूनियन की संसद और सरकार के गठन का प्रस्ताव पारित करवाया। यह भी प्रस्ताव पारित करवाया कि संयुक्त राष्ट्र संघ, यूएनओ को लोकतांत्रिक बनाते हुए उस संगठन को ‘‘संयुक्त राष्ट्रीय सरकार’’, यूएनजी में रूपांतरित कर दिया जाए।

श्री विश्वात्मा जी ने गत अप्रैल महीने में भारत सहित 192 देशों के राष्ट्राध्यक्षों को यह प्रस्ताव भेजते हुए दुनिया भर के देशों के नागरिकों को उनके अंतर्राष्ट्रीय और वैश्विक अधिकार मंजूर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संधि करने का प्रत्यावेदन भेजा। प्रत्यावेदन में यह लिखा गया है कि दुनिया में आज युद्ध एक फैशन बन गया है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ पर अब आंख बंद करके भरोसा नहीं किया जा सकता। यह लिखा गया है कि पहले की तरह इस बार भी प्रत्यावेदन पर दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों के कार्यालय हो सकता है कि चुप्पी साध लें और अंतर्राष्ट्रीय संधि की पहल न करें और दुनिया भर के लोगों को मिसाइलों की बरसात के नीचे मरने के लिए अनाथ छोड़ दें। इसलिए इंटरनेट और सोशल मीडिया का लाभ उठाते हुए दुनिया भरके सभी देश के नागरिकों को आपस में एग्जिट हो जाना चाहिए। और अंतरिम सांसद और अंतरिम सरकार बनाकर दुनिया भर की सरकारों के सामने एक मॉडल पेश करना चाहिए। जिससे दुनिया भर की सरकारों का संचालन करने वाले लोगों के मन में अंतरराष्ट्रीय और वैश्विक सरकारों के गठन के विषय में जो आशंकाएं हैं, उनका समाधान हो सके।

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