कौन हैं विश्वात्मा ?

श्री विश्वात्मा हमारे समय के प्रख्यात राजनीतिक चिंतक, सुधारक, प्रेरक वक्ता और आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं। उन्होंने दर्जनों पुस्तकों के माध्यम से एक ऐसी नई विचारधारा प्रस्तुत की है, जो आध्यात्मिकता और राजनीति को जोड़कर समाज और शासन में नैतिक मूल्यों को स्थापित करने की राह दिखाती है। उनकी प्रेरणा से भारत में आधार कार्ड, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और डायरेक्ट कैश बेनिफिट ट्रांसफर जैसी अनेक ऐतिहासिक योजनाएँ और वोटरों के आर्थिक अधिकारों की राजनीति अस्तित्व में आईं।


श्री विश्वात्मा हमारे ऐसे आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं, जिनकी दृष्टि ने दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित किया है। दर्जनों प्रभावशाली पुस्तकों के लेखक के रूप में उन्होंने एक नई आध्यात्मिक और राजनीतिक विचारधारा की स्थापना की है, जो नैतिक मूल्यों और व्यावहारिक शासन के बीच की खाईं को पाटती है.

1969 में मुंबई में जन्मे श्री विश्वात्मा ने अपना जीवन समाज और मानवता की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। जातिवाद, संप्रदायवाद और संकीर्ण राष्ट्रवाद के विरोधी रहते हुए स्वेच्छा से उन्होंने अविवाहित और बेरोज़गार रहकर अपना जीवन गरीबों और वंचितों की सेवा को समर्पित किया। उनके त्याग और निःस्वार्थ जीवन ने लाखों लोगों को प्रेरित किया है।

श्री विश्वात्मा की विशेषता यह है कि वे सरल भाषा में जटिल विचारों को जनता तक पहुँचाते हैं। उन्होंने जहाँ अशिक्षित जनसमूह को गहन सत्य समझाए, वहीं वरिष्ठ अधिकारी और सैकड़ों सांसदों ने भी उनके मार्गदर्शन का लाभ उठाया। उनका जीवनपथ आज समाज, राजनीति और आध्यात्मिकता में वास्तविक परिवर्तन की तलाश करने वालों के लिए एक दीपस्तंभ है।

सन् 2004 से 2024 तक भारत में बनी कई ऐतिहासिक योजनाओं और कानूनों के पीछे उनकी ही विचारधारा और कार्यों की प्रेरणा रही है। आधार कार्ड, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और डायरेक्ट कैश बेनिफिट ट्रांसफर जैसी सैकड़ों योजनाएँ और राजनीतिक पार्टियों द्वारा लोगों को नकदी देने की घोषणाएं उनकी सोच और संसदों के बीच किए गए उनके कामों से गहराई से प्रभावित रही हैं। 2004 से 2011 के बीच उन्होंने तत्कालीन सैकड़ों सांसदों को मार्गदर्शन और प्रेरणा दी, जिनमें से अनेक आगे चलकर मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। सन् 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और उसके परिणामस्वरूप हुए सत्ता परिवर्तन में भी श्री विश्वात्मा द्वारा संसदों के बीच किए गए कार्यों की बड़ी भूमिका रही।

श्री विश्वात्मा 1969 में मुंबई में एक यादव परिवार में जन्मे। उनकी मूल जड़ें उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले से जुड़ी हैं। श्री विश्वात्मा ने स्वयं को समाज के लिए समर्पित करने का मार्ग चुना। वे जातिवाद, संप्रदायवाद और पूंजीवादी संकीर्ण राष्ट्रवाद के प्रखर विरोधी हैं। समाज को नई दिशा देने के उद्देश्य से उन्होंने 23 वर्ष की आयु में यह संकल्प लिया कि बदलते व्यक्तित्व के अनुसार वह प्रत्येक 25 वर्ष में अपना नाम परिवर्तन करेंगे। इसी संकल्प के तहत 25 वर्ष की आयु में उनका नाम "भरत गांधी" रखा गया और 50 वर्ष की उम्र तक वे इसी नाम से जाने गए। 50 वर्ष की आयु के बाद उनके अनुयायियों ने उन्हें "विश्वात्मा" का नाम दिया, जो अब व्यापक रूप से प्रचलित है और भारत सरकार के गजट में प्रकाशित है। इसीलिए इंटरनेट पर उनके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए "विश्वात्मा भरत गांधी" सर्च करना पड़ता है।

राजनीतिक साजिश के तहत दो बार उनकी गिरफ्तारी कराई गई। इसलिए एक बार लगभग 3 महीने और दूसरी बार 6 महीने उनको उत्तर प्रदेश और नागालैंड की जेलों में भी रहना पड़ा।

सन 1997 में उन्होंने जनहित संबंधी अपने कुछ संकल्प पूरे होने तक अविवाहित रहने का संकल्प लिया। बेरोजगारी की एक दुर्घटना देखकर उन्होंने मात्र 23 साल उम्र में अपनी पढ़ाई छोड़ दी । वह स्वेच्छा से बेरोज़गार रहकर बेरोज़गारी की समस्या का स्थायी समाधान खोजने का निश्चय किया। वे पारिवारिक जीवन से इसलिए दूर रहे, ताकि अपना संपूर्ण जीवन भारत और विश्व के सबसे गरीब और मानवता की सेवा को समर्पित कर सकें। मेरठ में गरीबी से आत्महत्या करने वाले एक परिवार की घटना से व्यथित होकर उन्होंने 14 दिन का अनशन किया। इस भूख हड़ताल के कारण उनके शरीर में स्थायी कमजोरी आ गई, जिसके चलते किसी को देखकर पहचान लेने की स्मरण शक्ति स्थाई रूप से चली गई और उन्हें हर मौसम में टोपी पहनकर रखना जरूरी हो गया। उनका त्याग और निःस्वार्थ समर्पण ऐतिहासिक, अद्वितीय और अविश्वसनीय माना जाता है। उनके जीवन के वर्षवार घटनाक्रम इंटरनेट पर "विश्वात्मा भरत गांधी का जीवनवृत" सर्च करके जाना जा सकता है